Friday, October 26, 2012

શનિ ચાલીસા


।। दोहा ।।

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ।।

जय जय श्री शनिदेव प्रभु,सुनहु विनय महाराज ।

करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ।।



जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ।।

चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ।।

परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ।।

कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमके ।।

कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं आरिहिं संहारा ।।

पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुख भंजन ।।

सौरी, मन्द, शनि, दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ।।

जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं । रंकहुं राव करैंक्षण माहीं ।।

पर्वतहू तृण होई निहारत । तृण हू को पर्वत करि डारत ।।

राज मिलत बन रामहिं दीन्हो । कैकेइहुं की मति हरि लीन्हों ।।

बनहूं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चतुराई ।।

लखनहिं शक्ति विकल करि डारा । मचिगा दल में हाहाकारा ।।

रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ।।

दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ।।

नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ।।

हार नौलाखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ।।

भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ।।

विनय राग दीपक महं कीन्हों । तब प्रसन्न प्रभु है सुख दीन्हों ।।

हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी । आपहुं भरे डोम घर पानी ।।

तैसे नल परदशा सिरानी । भूंजी-मीन कूद गई पानी ।।

श्री शंकरहि गहयो जब जाई । पार्वती को सती कराई ।।

तनिक विलोकत ही करि रीसा । नभ उडि़ गयो गौरिसुत सीसा ।।

पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची द्रौपदी होति उघारी ।।

कौरव के भी गति मति मारयो । युद्घ महाभारत करि डारयो ।।

रवि कहं मुख महं धरि तत्काला । लेकर कूदि परयो पाताला ।।

शेष देव-लखि विनती लाई । रवि को मुख ते दियो छुड़ई ।।

वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग दिग्ज गर्दभ मृग स्वाना ।।

जम्बुक सिंह आदि नखधारी । सो फल जज्योतिष कहत पुकारी ।।

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं ।।

गर्दभ हानि करै बहु काजा । गर्दभ सिद्घ कर राज समाजा ।।

जम्बुक बुद्घि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्रण संहारै ।।

जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ।।

तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चांदी अरु तामा ।।

लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै ।।

समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सर्व सुख मंगल कारी ।।

जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ।।

अदभुत नाथ दिखावैं लीला । करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ।।

जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ।।

पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ।।

कहत रामसुन्दर प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ।। 


।। दोहा ।।

पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार ।

करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ।।

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